ज्ञान एवं पाठ्यचर्या: भाग 1 & 2

About The Book

यह पुस्तक शिक्षक-शिक्षा विद्यालय नेतृत्व और पाठ्यचर्या-निर्माण से जुड़े हर पाठक के लिए एक समग्र संतुलित और उपयोगी मार्गदर्शिका है। इसमें ज्ञान के दार्शनिक–ज्ञानमीमांसात्मक आधार से लेकर पाठ्यचर्या के डिज़ाइन क्रियान्वयन मूल्यांकन और नवीकरण तक—कक्षा और संस्थान दोनों स्तरों पर आवश्यक सभी चरणों को सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया गया है। भाषा सरल अकादमिक और उदाहरण भारतीय संदर्भ-संवेदनशील हैं ताकि सिद्धांत और व्यवहार के बीच एक सशक्त सेतु निर्मित हो सके।भाग 1 (द्वितीय सेमेस्टर); पाठक को “हम क्या और क्यों पढ़ाते हैं” की वैचारिक नींव प्रदान करता है—शिक्षा का अर्थ शिक्षा–दर्शन का अंतर्संबंध ज्ञानमीमांसा के मूल प्रश्न और पाश्चात्य तथा भारतीय चिंतकों (प्लेटो रूसो आर. एस. पीटर; विवेकानंद गांधी टैगोर अरविन्द विनोबा) के शैक्षिक योगदान के माध्यम से। इसके बाद “शिक्षा में ज्ञान का स्वरूप” अध्याय अवधारणाओं कथनों रूपकों उभरते ज्ञान-आधार सूचना–ज्ञान–विश्वास के अंतर और शिक्षा के भौतिक–प्राकृतिक–सामाजिक विज्ञानों से अंतःसंबंध को व्यावहारिक दृष्टि से स्पष्ट करता है। “पाठ्यचर्या की अवधारणा” खंड में पाठ्यचर्या/रूपरेखा/सिलेबस का अंतर पाठ्यपुस्तक की भूमिका तथा मुख्य पाठ्यचर्या के भारतीय परिप्रेक्ष्य का सुविचारित विश्लेषण है। “पाठ्यचर्या निर्धारक” भाग राष्ट्रीय–राज्य स्तरीय कारकों (विविधता आकांक्षाएँ अर्थव्यवस्था तकनीक राष्ट्रीय प्राथमिकताएँ शासन अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ) और विद्यालय-स्तरीय विचारों (उद्देश्य विषय-चरित्र बहुसांस्कृतिक–बहुभाषी संदर्भ समावेशन लैंगिक समानता पर्यावरण मूल्य) को क्रियान्वयन-उन्मुख रूप में रखता है।भाग 2 (चतुर्थ सेमेस्टर); विद्यालय-स्तर पर पाठ्यचर्या विकास की व्यावहारिक रूपरेखा देता है—विषय-केंद्रित पर्यावरणवादी व्यवहारवादी दक्षता-आधारित और शिक्षार्थी-केंद्रित/रचनावादी दृष्टिकोणों की तुलनात्मक समझ के साथ उद्देश्यों का निर्धारण ज्ञान चयन अवधारणाओं का संगठन और विषय–थीम का एकीकरण कैसे हो—यह चरणबद्ध ढंग से समझाया गया है। “विद्यालय—पाठ्यचर्या सहभागिता का स्थल” अध्याय विद्यालयी दर्शन नेतृत्व–प्रशासन पुस्तकालय–प्रयोगशाला–खेल–पड़ोस जैसे संसाधनों और स्थानीय–क्षेत्रीय–राष्ट्रीय बाह्य एजेंसियों के सहयोग की कार्यसाध्य रणनीतियाँ प्रस्तुत करता है। समापन खंड “कार्यान्वयन और नवीकरण” शिक्षक की केंद्रीय भूमिका उद्देश्यों की लचीली व्याख्या विविध अधिगम अनुभवों का सृजन संसाधनों का चयन–विकास समीक्षा–नवीकरण की प्रणाली निरंतर मूल्यांकन बहु-स्रोत फीडबैक और अपेक्षा–उपलब्धि सामंजस्य के विश्वसनीय ढाँचों के साथ पुस्तक को कक्षा-उपयोगी बनाता है।
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