एक छोटे से शहर में सपनों की दुकान थी जहां न कपड़े बिकते थे न सामान—बल्कि सपने। बूढ़े दुकानदार दीनदयाल जी लोगों की आँखों में देखकर उनके अधूरे सपने पहचान लेते और प्यार से उन्हें शीशी में बंद कर दे देते। लोग पहले हँसते थे पर धीरे-धीरे खिंचे चले आते। पहली ग्राहक राधा थी एक उदास बच्ची। उसने एक बातूनी गुड़िया का सपना मांगा। दीनदयाल जी ने मुस्कुराकर उसे एक शीशी दी—और राधा की आँखों में उम्मीद चमक उठी।
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