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About The Book
Description
Author
आरम्भ में ग़ज़ल ‘तश्बीब’ के नाम से जानी जाती थी लेकिन बाद में इस विधा में ‘मुल्क़ा आमीन कमाल’ ने गेयता एवं संगीत का पुट देकर इसे ग़ज़ल नाम दिया। पहले ये विधा हुस्नो-इश्क़ के समन्वय के धरातल पर प्रसिद्ध हुई जो साँसारिक रही फिर हुस्नो-इश्क़ की सौन्दर्य-गाथाएँ लौकिकता से अलौकिकता की तरफ़ मुड़ गयीं। फ़ारसी की ग़ज़ल-गायकी नग़मे के रूप में ईरान में परवान चढ़ी बाद में ख़य्याम शेख़ सादी हाफ़िज़ शीराज़ी जैसे ग़ज़लकारों की गायकी-शैली अस्तित्व में आयी। संगीत के कलाकारों ने भी ग़ज़ल को गेयता की लहरियों में शराबोर कर दिया। उर्दू एवं हिन्दी की गंगा-जमुनी सभ्यता की अद्यतन उपलब्धि ख़ूबसूरत ग़ज़ल बन गयी। जिसने भी उसे पढ़ा-लिखा उसका दीवाना हो गया और ग़ज़ल गौरवान्वित हुई। आज काव्य की समस्त विधाओं में ग़ज़ल सर्वाधिक लोकप्रिय विधा का स्थान प्राप्त कर चुकी है। यही कारण है कि आजकल छंद-धर्मी अधिकांश पत्रिकाएँ अपनी काव्य सामग्री में लगभग आधे पृष्ठ ग़ज़ल को देती हैं। इतना ही नहीं छंद से दूरी बनाकर चलने वाली पत्रिकाएँ भी ग़ज़ल को प्रकाशित करने से परहेज़ नहीं करतीं। लगभग सभी पत्रिकाएँ एक-दो साल के अंतराल से ग़ज़ल-विशेषांक भी अवश्य प्रकाशित करती हैं। इतना ही नहीं प्रतिवर्ष व्यक्तिगत और सहयोगात्मक स्तर पर अनेक ग़ज़ल-संकलन भी प्रकाशित हो रहे हैं। ये ग़ज़ल की लोकप्रियता के प्रमाण हैं। ये ग़ज़लें कैसी होती हैं ये अलग बात है !.