प्रणवकुमार वंद्योपाध्याय हिंदी के एक प्रमुख कथाकार हैं। उनकी कहानियों और उपन्यासों की घटनाएँ पात्र और विस्तार की भूमि सबसे अलग है। कहानियों के अंत भी!<br>प्रणवकुमार अलग-अलग विषय की जो सारी कहानियाँ लिखते रहे वे स्वयं ही एक बेहद लंबी कथा की सृष्टि करती हैं। लेखक की कहानियों के ज़रिए जीवन की आपाधापी के साथ संघर्ष के रूप में जो कुछ सामने आया वह संभवतः अंतहीन है। उसी में लेखक मनुष्य को नए सिरे से लगातार परखता रहा।<br>कहानीकार पात्रों के साथ अपने को भी अलग-अलग निगाहों से परखता रहा। यह शायद इस कारण होता रहा कि प्रणवकुमार कई बार इस तरह अपने भीतर चले जाते कि उनकी दृष्टि संभवतः अपरिभाष्य सीमाओं के पार चली जाती।<br>कहानीकार प्रणवकुमार ‘ख़बर’ ‘गोपगंज संवाद’ ‘अरण्यकांड’ ‘पर्दातक’ जैसे कई महत्त्वपूर्ण उपन्यास लिखने के अतिरिक्त चित्रकार और टी॰वी॰ फ़िल्म निर्देशक भी हैं। इनके अलावा एक यात्री भी जो दूर-दराज़ के गाँवों क़स्बों और नगरों से लेकर समुद्र-पार के अनेक देशों की यात्रा पर जाता रहा लेकिन अंततः अपनी ही भूमि पर लौट आया। एक लंबे समय तक ‘पश्यंती’ का संपादन कर कथाकार-कवि ने जो कीर्तिमान स्थापित किया वह आज के समय की एक ज़रूरी पहचान है।
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