आज प्रकाश की गति के लगभग होने वाले परिवर्तनों की वजह से दिमाग स्क्रीन पर देख और सोच सकता है और बदलाव कर सकता है। सोचना देखना हो रहा हैदेखना सोचना हो रहा है। देखने और सोचने के बीच विलय की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यह पदार्थ और चेतना के विकास में एक नया चरण है। अब तक हमारा दिमाग माइक्रोस्कोपिक प्रक्रियाओं की कल्पना करने में सक्षम नहीं रहा हैऐसा इसलिए है क्योंकि विकास ने हमें इस तरह से नहीं बनाया है। हमारे पूर्वजों के इतिहास में माइक्रोस्कोपिक फेनोमिना कभी भी उनके संवेदी वातावरण का हिस्सा नहीं रही है। इसलिए चेतना की संरचनाओं को विकसित करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी जो हमें क्वांटम दुनिया को बेहतर ढंग से समझने में सक्षम बनाती । हम क्लासिकल पद्धति का उपयोग करके नई वास्तविकताओं को नहीं समझ सकते हैं। रिचर्ड फेनमैन द्वारा यह सही कहा गया है कि “इलेक्ट्रान जो नाभिक के चारों ओर गति करते हैं उनकी गति को समझने का प्रयास यांत्रिक नियमों के उपयोग द्वारा किया जाता है ऐसा किया जाना वास्तविक विफलता थी” । इलेक्ट्रॉनों की गति को उसी तरह से नहीं समझा जा सकता है जैसे पृथ्वी और सूर्य के चारों ओर अन्य ग्रहों की गति को समझा जाता है । नियम पूरी तरह से अलग हैंपरिणामस्वरूप दार्शनिक दृष्टिकोण भी अलग होना चाहिए। ऐसे में यह पुस्तक दुनिया के प्रति हमारी समझ को विकसित करने के लिए नए दर्शन और नए उपकरणों की मांग पर बल देती है इसमें प्रकृति की द्वंदात्मकता को विद्युत चुम्बकत्व के माध्यम से समझने पर विभिन्न वैज्ञानिकों और विचारकों मसलन आइंस्टीनहेगेलमार्क्सलेनिनकांट आदि के महत्वपूर्ण संदर्भ लिए गए हैं । यह पुस्तक अनिल राजिमवाले की मटेरियलिज्म एंड डायलेक्टिक्स इन पोस्ट क्लासिकल वर्ल्डइम्पैक्ट ऑफ़ इलेक्ट्रोमैग्नेटिज्म का हिंदी अनुवाद है – अमित राय
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