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About The Book
Description
Author
दामोदरदत्त दीक्षित ने प्रायः ऐसी विसंगतियों को अपने व्यंग्यवाणों का निशाना बनाया है जो अक्सर लोगों के सामने होते हुए भी उनकी दृष्टि से ओझल रहती हैं।<br>अच्छे व्यंग्य की पहचान यह है कि उसके एक छोर पर आक्रोश हो तो दूसरे छोर पर करुणा। दीक्षित जी के व्यंग्यों में करुणा की अंतर्धारा सरस्वती के स्रोत की तरह विद्यमान रहती है। विशेषणों के तो वे जादूगर हैं। उनकी शैली में विदग्धता है जो विसंगतियों पर उनकी मारक क्षमता को बढ़ाती है।<br>पेशे से प्रादेशिक सिविल सेवा के अधिकारी दीक्षित जी के पाँच व्यंग्य-संग्रह आत्मबोध सबको धन्यवाद चंद बेहूदी हरकतें प्रतिनिधि व्यंग्य आपरेशन महुआ प्रकाशित हो चुके हैं।<br>यह पूछने पर कि हास्य-व्यंग्य में से वे किसे बेहतर मानते हैं दीक्षित जी सहज भाव से उत्तर देते हैं- अपने-अपने स्थान पर हर विधा का महत्व है। लेखक किसी भी विधा का हो स्तरहीन हो सकता है विधा नहीं। मैं नहीं मानता कि मैं या कोई अन्य लेखक व्यंग्य लिखता है इसलिए बेहतर विधा हो गई। कभी-कभी हास्य साधक ही सिद्ध होता है व्यंग्य को सुपुष्ट करता है; पर जब बिना किसी औचित्य के अनायास व्यंग्य में हास्य डाला जाता है तो वह बाधक और दुखदाई हो जाता है।