डॉ. सरोजनी प्रीतम व्यंग्य-जगत में विख्यात हिन्दी की एकमात्र ऐसी महिला व्यंग्य-लेखिका हैं जिन्होंने अपनी रचना से 'हंसिका' नाम की एक नई विधा को जन्म दिया है।<br>आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद 'स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी में नगर-जीवन' विषय पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।<br>आपका समूचा लेखन व्यंग्य के प्रति समर्पित है। अब तक आपको हास्य-व्यंग्य के लिए प्रधानमंत्री द्वारा दिनकर शिखर सम्मान 'सीता का महाप्रयाण' के लिए कामिल बुल्के अवार्ड; हास्य कविताओं के लिए कलाश्री पुरस्कार 'आखिरी स्वयंवर' के लिए हिन्दी अकादमी पुरस्कार आदि प्राप्त हो चुके हैं।<br>आपकी 30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।<br>आपके हास्य उपन्यास 'बिके हुए लोग' पर 13 एपिसोड का हास्य धारावाहिक भी दूरदर्शन द्वारा स्वीकृत हो चुका है।<br>अब तक प्रकाशित हास्य-कहानियां कविताएं उपन्यास और बच्चों के लिए हास्य-कथाएं व कविताएं आपकी विशिष्टता है।<br>अब तक प्रकाशित कुछ पुस्तकें- आखिरी स्वयंवर एक थी शांता पोपटलाल विरहनामा आफत के पुतले अँधेरे की चट्टान सनकीबाई संकरी उदासचंद आशीर्वाद के फूल डंक का डंक लाइन पर लाइन हंसिकाएं ही हंसिकाएं छक्केलाल आदि।
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