<p class=ql-align-justify>पुस्तक में उल्लेखित घटनाएं और पात्र काल्पनिक हैं। यह उपन्यास काशी के राजा दिग्विजय सिंह के जीवन पर आधारित है। महाराज दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी सावित्री के कोई संतान नहीं थी जिससे वे चिंतित रहते थे। एक दिन बाबा विश्वनाथ के दर्शन के दौरान सावित्री को गंगा में एक टोकरी में एक बच्चा मिला जिसे उन्होंने कार्तिकेय नाम दिया। एक साल बाद सावित्री ने एक पुत्र वीर को जन्म दिया। </p><p class=ql-align-justify>चुनारगढ़ के राजा जयचंद्र के बेटे यशवंत ने काशी पर हमला किया और अपमानित होने के बाद अपने पिता को बंदी बना लिया। यशवंत ने चुनारगढ़ की सत्ता हथिया ली और छत्तीसगढ़ के सेनापति भानुप्रताप के पुत्र तेजप्रताप के साथ मिलकर काशी पर आक्रमण की योजना बनाई। इस बीच महाराज दिग्विजय सिंह की आकस्मिक मृत्यु हो गई और सूर्यदेव सिंह ने कार्तिकेय और वीर को सुरक्षित स्थान पर ले जाकर शरण दी।</p><p class=ql-align-justify>यशवंत और उसके साथी जयंत और भवानीशंकर को मारने में सफल हो गए। युद्ध के दौरान कार्तिकेय घायल हो गया और रुद्र ने उसे बचाकर एक वैद्य धन्वंतरि के घर पहुंचता है जहां सावित्री (धन्वंतरि की बेटी) ने उसकी देखभाल की। </p><p class=ql-align-justify>कार्तिकेय की मुलाकात सावित्री (धन्वंतरि की बेटी) की सहेली चंद्रावती से हुई और उसे बचाने के लिए कार्तिकेय ने नदी में कूदकर उसकी जान बचाई। इस बीच महारानी सावित्री ने चुनारगढ़ पर आक्रमण का आदेश दिया और सूर्यदेव वीर और रुद्र ने चुनारगढ़ की तरफ कूच किया। कार्तिकेय को महल की रक्षा के लिए पीछे छोड़ दिया गया लेकिन वह बिना बताए चंद्रावती से मिलने के लिए निकल गया।</p><p></p>
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