संचार और मानव-समाज दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना दूसरा अस्तित्व हीन है। मनुष्य ने अपने अन्दर विद्यमान सम्प्रेषण की भूख मिटाने के लिए ही प्राचीनकाल से लेकर आजतक संचार के क्षेत्र में अद्भुत विकास किया है। यही कारण है कि सूचना-क्रान्ति के इस युग में आज सूचना-उद्योग एवं तकनीक अन्य सभी उद्योगों से आगे है। परन्तु संचार को केवल सूचना समझ लेना गलत होगा। वस्तुतः संचार वह प्रक्रिया है जिससे जुड़कर सूचना अस्तित्व में आती है एवं संपूर्ण लोक का भ्रमण करती है। इस कारण संचार का सम्बन्ध सूचना की सम्प्रेषणीयता से है। इसी संचार पर समस्त ज्ञान-विज्ञान के बड़े-बड़े टॉवर खड़े हैं। इन विशालकाय टावरों को केवल एक छोटे से कक्ष (हिन्दी-विभाग) तक संचार से लेकर सूचना क्रान्ति को सीमित करना एक महाभूल है और कहीं-कहीं यह महाभूल हो रही है क्योंकि कई विश्वविद्यालयों में ‘पत्रकारिता और जनसंचार’ पाठ्यक्रम केवल हिन्दी-विभाग तक ही सीमित कर दिया गया है। जिसके दुष्परिणाम भी अब स्प हो रहे हैं क्योंकि कैसे लिखें? का प्रशिक्षण तो पत्रकारिता-पाठ्यक्रमों से मिल जाता है परन्तु तंग दृष्टि के कारण क्या लिखें? की समस्या खड़़ी हो जाती है। इस कारण संचार के अध्ययन के साथ-साथ संचार के पाठ्यक्रमों में सामाजिक विज्ञान विज्ञान कला आदि के मूल तत्त्वों एवं मानक सिद्धान्तों का समावेश होना चाहिए तभी क्या लिखा जाए? का समाधान हो सकेगा।
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