सफ़र सिपाही का (स्कूल से सरहद तक)

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सफर सिपाही का (स्कूल से सरहद तक) : देश की सरहद पर तैनात एक सिपाही के जीवन की सरहद पर पहुंचने की कहानी की असल शुरुवात दरअसल उस समय हो जाती है जब वह स्कूल में पढ़ रहा होता है। दूर दराज के गांव और कस्बों से आने वाले ये नौजवान विभिन्न परिस्थितियों और घटनाओं से गुजरते हुए किस प्रकार फौज के प्रशिक्षण केंद्र तक पहुंचकर देश की सरहद की सुरक्षा में जुट जाते हैं इसी पर आधरित है ये उपन्यास ‘सफर सिपाही का - स्कूल से सरहद तक’। पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में शिवालिक पर्वत के दामन में बसा का एक शहर है सहारनपुर। इस शहर का एक छोटा सा कस्बा है छुटमलपुर। इस के पास एक गांव है फतेहपुर जहाँ तीन दोस्त इकट्ठे स्कूल में पढ़ते हैं। वर्ष 1995-96 के दौरान ये तीन दोस्त अलग-अलग पारिवारिक परिस्थितियों में ग्रामीण जीवन की चुनौतीयों का सामना करते हुए सुरक्षा बल में सिपाही के पद पर भरती होने के प्रयास में जुट जाते हैं। इन में से एक है महेंद्र जो असाधरण भावनात्मक-समझ का धनी है और इसी का इस्तेमाल करते हुए महेंद्र तरह तरह की चुनौतीयों का सामना करता है और अपने दोस्तों के लिये प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। इस तरह लेखक ने इस उपन्यास के माध्यम से महेंद्र के हम-उम्र नौजवानों के लिये आदर्श प्रस्तुत करने के साथ-साथ ग्रामीण जीवन की झलक दिखाने का प्रयास किया है। साथ ही सुरक्षा बल के जवानों में भाव-समझ की संकल्पना को मन-ज्योति के माध्यम से लागू करने की कोशिश भी की है।
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