ग़ज़ल का नाम सुनते ही कई अक्श दिल में उभरने लगते हैं । जैसे समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त होता है ठीक उसी प्रकार साहित्य मंथन से ग़ज़ल का आगमन होता है। ग़ज़ल की विधा कविता कहानी और उपन्यास से अधिक मुश्किल है तभी तो बड़े मूर्थघन्य लेखक भी इस विद्या को नहीं अपना आए । जय शंकर प्रसाद सूर्यकान्त त्रिपाठी महावीर प्रसाद दिवेदी मुंशी प्रेमचन्द जैसे कहानी सम्राट ग़ज़ल से वंचित रहे। जिस तरह साहित्य की कहानी कविता या उपन्यास को स्वछन्द और आत्मनिर्भर होकर लिखा जाता है उसी प्रकार गजल को आसानी और सरलता से नहीं लिखा जाता । ग़ज़ल की परिधि आकृति और संरचना मनोवेगों उद्वेगो और केवल एहसासों का उदग़रम नहीं है । ग़ज़ल मुकामल बहर वनज़ रूज और एक मीटर है । गज़ल के लिए किसी पारगत ग़ज़लगों का आश्रय लेना पड़ता है। गजल सोने की डली से सुन्दर आभूषण तब बनती है जब सुनार की आग में तपकर शुद्ध आकृति धारण करती है।
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