संस्कृत वांग्मय में शब्दशक्ति विषयक सिद्धान्तों के प्रतिपादन में आचार्य मम्मट एवं नागेश भट्ट का अप्रतिम स्थान है। नागेश भट्ट ने महाभाष्य एवं वाक्यपदीय के सिद्धान्तों को अपनी प्रतिभा से परिष्कृत करके लघुमंजूषा एवं परमलघुमंजूषा में जो स्पष्ट स्वरूप प्रदान कर के व्याकरण शास्त्र को पूर्ण दर्शन का स्वरूप दिया है निश्चय ही यह कार्य अतिप्रशंसनीय है। मम्मट ने व्याकरण न्याय एवं मीमांसा से संबंधित दार्शनिक सिद्धान्तों को काव्यशास्त्राय निकष में स्थापित करते हुए शब्द शक्तियों की मीमांसा प्रस्तुत की है। दोनों आचार्य जिस सिद्धांत का विवेचन करते हैं उनमें किसी भी प्रकार के संदेह की भी संभावना नहीं की जा सकती है। काव्यप्रकाश के प्रतिपाद्य में शब्द शक्तियों का महत्वपूर्ण स्थान है। उत्तम काव्य की परिभाषा निबद्ध करते हुए स्फोट रूप शब्द की सत्ता के विवेचन से इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ का प्रारंभ होता है। व्याकरण शास्त्र के नित्य एवं विभु शब्द स्वरूप स्फोट की सत्ता स्वीकार करते हैं। संकेतितार्थ की विवेचना करते हुए ये व्याकरण शास्त्र के प्रमाणभूत आचार्य पतंजलि की मान्यताओं को स्वीकार ही नहीं करते अपितु इसी की पृष्ठभूमि पर अपने सिद्धान्तों को स्थापित भी कर देते हैं। व्याकरण शास्त्र के साथ इनका इतना सहज संबंध स्थापित हो गया है कि मीमांसा एवं न्याय दर्शन की मान्यताओं को ये सर्वत्र पूर्वपक्षीय सिद्धान्त के रूप में ही मान्यता प्रदान करते हैं। लक्षणा शक्ति के स्वरूप का निरूपण करते हुए नागेशभट्ट द्वारा स्वीकृत शक्यतावच्छेदक रूपा लक्षणा का समर्थन करते हैं। इनका यह कथन कि तट का बोध गंगात्वेन रूपेण न करने पर शैत्य एवं पावनत्व रूप प्रयोजन की प्रतीति न हो सकेगी व्याकरणशास्त्र के प्रति असीम श्रद्धाभाव को ही प्रकट करता है।
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