पाँचवी सम्त

About The Book

Poetic collection of 'fehmi badauni' Translated/ transcribed in Hindi for wider readership. The collection mostly includes selected ghazals and manzoomat of fehmi badauni. The book is worth reading and admiring for poetry loving people. 'फ़हमी' बदायूनी किसी तआर्रुफ़ के मोहताज नहीं. नयी तर्ज़ में गुफ्तगू करते हुए आपके र सीधे दिल में ऐसे उतरते हैं कि पढने वाला तारीफ़ किये बगैर नहीं रह सकता. उनमें दर्द भी है तड़प भी और तलब भी. आपके चाहने वालों को काफ़ी अरसे से आपके मजमूए कलाम का इंतज़ार था लिहाज़ा हिन्दी पाठकों की ख़ास फ़र्माइयिश को ध्यान में रखते हुए इस किताब को मंज़रे आम पर लाया गया. नाम 'ज़मा शेर खान' उर्फ़ 'पुत्तन खान' (पैदाइश 1952) क़स्बा कसौली बदायूं (उ.प्र.) के रहने वाले हैं. अरबाबे अदब में 'फहमी बदायुनी' के नाम से मशहूर हैं. 'फ़हमी' साहब संजीदा और अंतर्मुखी व्यक्ति हैं. उन्होंने जो भी विचार शायरी के हवाले से स्थापित किये हैं वो सच्चे हैं इसलिए मुखातिब के दिलो ज़ेहन में बगैर किसी जद्दोजेहद के सीधे उतर जाते हैं. उनके मजमूआ कलाम 'पांचवीं सम्त' से कुछ चुनिन्दा र- जब तलक तू नज़र नहीं आता घर के जुमरे में घर नहीं आता; रोज़ मिलते हैं वो हमें दिन में चैन क्यों रात भर नहीं आता; शायरी खूने दिल से होती है मुफ़्त में ये हुनर नहीं आता; तू अगर साथ हो तो रस्ते में और कोई नज़र नहीं आता; *** भूल के रोज़े-हश्र के ख़तरे ख्वाहिशों के उठाये हैं नखरे; थोड़ी-थोड़ी दुआ क़ुबूल हुई आज वो कुछ क़रीब से गुज़रे; उसने तो जम के बेवफ़ाई की हम मगर उम्र भर नहीं सुधरे; ****************रात का इंतज़ाम करने लगे रिंद मस्जिद में काम करने लगे; कान में मैकशों ने क्या फूंका शेख जी जाम जाम करने लगे; जिनकी ज़ीनत थी चाक दामानी वो सिलाई का काम करने लगे; हुस्न इतना भी पुर-वक़ार न हो इश्क़-फ़रशी सलाम करने लगे; गुफ़्तगू दर्द और दवा पर थी तुम हलालो-हराम करने लगे***********.
Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
downArrow

Details


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE