शुक्रिया से अपनी बात शुरू करते हुए हर उस इन्सान हर उस वाकये हर उस पल को शुक्रिया कहना चाहती हूँ जिनसे कुछ ऐसे तज्रबात हासिल हुये जो ग़ज़लों और नज़्मों में ढलते चले गये और आख़िर में इस मजमुए में समा गये। पंजाबी नज़्मों ग़ज़लों से होता हुआ ये सफ़र 2014 में उर्दू/हिन्दुस्तानी नज़्मों ग़ज़लों की तरफ बढ़ा जो परिवार और दोस्तों की हौसलाअफ़ज़ाई से आज तक चल रहा है। पहली किताब है सो आज तक का सारा काम इकठ्ठा किया है बस। आपकी नेक और बेबाक राय की मुंतज़िर हूँ। बुलंदी के लिए जब भी ज़मीं तैयार होती है। किसी भी आस्मां से पेशतर हमवार होती है।
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