मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी में इतनी ख़तरनाक बीमारी नहीं देखी जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर डाला। लोग घरों में क़ैद हो गए एक-दूसरे से मिलने से डरने लगे साँस लेना मुश्किल हो गया। कोरोना के मरीज़ ऐसे दम तोड़ रहे थे जैसे आँधी आने पर झाड़ से पत्ते गिरते हैं। इन दिनों ज़ीनत एहसान ने एक पुस्तक लिखी है शीर्षक है : वक्त के आईने में कोरोना। इस पुस्तक में ज़ीनत साहिबा ने अपने संस्मरण अपने अनुभवों को एकत्रित कर पुस्तक के रूप में पेश किया है। पुस्तक आने वाली पीढ़ी के लिए एक विरासत के रूप में अमानत है। वे लोग जिन्होंने इस बीमारी को देखा और एहसास किया है उनके लिए ये यादगार पल बनकर रहेगी और जो लोग भविष्य में इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानना चाहेंगे उनके लिए इतिहास बनकर जानकारी देगी ये पुस्तक। कोरोना काल में कई नारों ने जन्म लिया गीत बने कविताओं ने जन्म लिया रिश्तों में बदलाव आया व्यापार और मनोरंजन के तरीक़े बदले वर्चुअल और ऑनलाइन महफ़िल का आग़ाज़ हुआ बेरोज़गारी और भुखमरी ने पैर पसारे दानवीरों ने अपने ख़ज़ाने खोल दिए। कुल मिलाकर कोरोना महाकाल के खट्टे-मीठे अनुभवों का संकलन है ये पुस्तक। अपनी यादों की लाइब्रेरी में रखने और मित्रों को एक तोहफ़े के रूप में देने लायक़ है ये पुस्तक। यह पुस्तक बार-बार पढ़ी जाएगी इसी आशा के साथ मैं अपनी शुभकामनाएँ लेखक के लिए पेश करता हूँ। एहसान क़ुरैशी हास्य कवि एवं अभिनेता मुम्बई
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