क्या ज़िंदगी सिर्फ तनख्वाह EMI और पदनाम तक सिमट कर रह गई है? यह किताब बताती है कि आदेशों का पालन और जीवन का उद्देश्य अलग हैं. लेखक ने अपने अनुभव से दिखाया है कि कैसे समाज डर और सुविधा ने हमारी पहचान दबा दी और कैसे सोच बदलकर वही सीमाएँ तोड़ी जा सकती हैं. यह किताब practical दिशा छोटी-छोटी आदतें और reflection exercises देती है — ताकि नौकरी को न खोते हुए भी आप नई पहचान आय और संतुलन बना सकें. पढ़ने वाले के पास अब सिर्फ प्रेरणा नहीं बल्कि करने योग्य कदम भी होंगे. यह किताब मध्यमवर्गीय पाठक के लिए एक आवाज़ है — जो बदलना चाहता है बस दिशा नहीं पाता. सुबह उठते ही वही ड्यूटी वही थकान वही EMI की चिंता... क्या यह सब देखकर आपके मन में भी एक आवाज़ गूंजती है: “क्या यही ज़िंदगी है?”। आपने सपने देखे थे पर अब आप सिर्फ़ दूसरों की उम्मीदों का बोझ ढो रहे हैं। यह किताब एक आईना है। यह आपको बताती है कि आप सिर्फ़ तनख्वाह के लिए नहीं बने हैं। आप उस चिंगारी के लिए बने हैं जो एक रोशनी बन सकती है। यह किताब किसी पद या नौकरी के खिलाफ़ नहीं है। इसका उद्देश्य आपको अपने जीवन के उद्देश्य की पहचान दिलाना है। यह किताब कोई झूठी सफलता की कहानी नहीं है। यह एक गाइड है जो आपको बताती है कि कैसे आप अपनी नौकरी को बिना छोड़े अपनी सोच समय और हुनर का उपयोग कर सकते हैं। यह आपको बताती है कि सोशल मीडिया या ए.आई. जैसे उपकरण आपका समय बर्बाद करने के लिए नहीं बल्कि आपका भविष्य बनाने के लिए हैं। अगर आप अपनी पूरी ज़िंदगी का नतीजा सिर्फ एक पेंशन पेपर नहीं देखना चाहते और एक ऐसी पहचान बनाना चाहते हैं जो नौकरी से भी बड़ी हो तो यह किताब आपके लिए है। यह सिर्फ़ एक किताब नहीं एक अदृश्य क्रांति है।
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