ऐसा हमें प्रतीत होता है कि ईश्वर पूर्ण है और हम मानव पूर्णता पाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं । भगवान की हम सबपर अपार कृपा ही समझनी चाहिए कि वो हममें कुछ न कुछ कमी रख ही देता है । निरंतर प्रयास करते रहें और हमें जो भी काम मिला है उसे निष्ठा पूर्वक करते रहें । कार्य किसी का भी हो उसमें निष्ठा का होना अनिवार्य है । कर्म के साथ निष्ठा जुड़ने से ही कर्मयोग बनता है ; भक्ति के साथ निष्ठा जुड़ने से भक्तियोग और ज्ञान के साथ निष्ठा जुड़ने से ज्ञानयोग बनता है । ईश्वर यही अभिलाषा रखता है कि अपनी कमी के बारे में जानकार हम जाग्रत रहें और उस कमी को दूर करने के लिए प्रयास करते रहें । इसी क्रम में स्वाध्याय बहुत महत्वपूर्ण है ।
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