“कांगड़ा के पारम्परिक लोक वाद्य एवं उनकी वादन शैलियां” पुस्तक कांगड़ा जनपद की सांस्कृतिक धरोहर और संगीत परंपरा का जीवंत दस्तावेज है। यह पुस्तक न केवल विभिन्न लोक वाद्यों की जानकारी देती है बल्कि उनके सामाजिक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को भी उजागर करती है।कांगड़ा क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले लोक वाद्यों को चार श्रेणियों—अवनद्ध सुषिर तत् और घन वाद्य—में वर्गीकृत किया गया है। अवनद्ध वाद्य जैसे ढोल ढोलकी नगाड़ा और टमक विवाह मेलों और देव-पूजन में प्रमुखता से बजाए जाते हैं। सुषिर वाद्य जैसे बांसुरी रणसिंघा और शहनाई पूजा-अनुष्ठान एवं उत्सवों में वातावरण को मधुरता प्रदान करते हैं। तत् वाद्य जैसे इकतारा और सारंगी लोकगायकों और संतों द्वारा भक्ति संगीत में प्रयुक्त होते हैं जबकि घन वाद्य जैसे चिमटा थाली घंटा और कंसी भजन-कीर्तन व लोकनाट्यों में ताल और लय के लिए उपयोग में लाए जाते हैं।लेखक डॉ. सतीश ठाकुर ने इन वाद्यों के निर्माण वादन शैली पारंपरिक उपयोग और लोक मान्यताओं से जुड़े पहलुओं को विस्तार से प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक लोककलाओं रीति-रिवाजों और समुदाय विशेष की भूमिका को भी रेखांकित करती है।पुस्तक शोधकर्ताओं संगीत विद्यार्थियों और लोक संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए एक अत्यंत उपयोगी संदर्भ सामग्री है। यह न केवल ज्ञानवर्धक है बल्कि कांगड़ा की लोकसांस्कृतिक आत्मा को संरक्षित करने का एक सराहनीय प्रयास भी है।
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