‘नूर की बूंदें' मोहसिन आफ़ताब की शायरी का मज्मूआ है। ऐसा मज्मूआ जिसमें उनकी संजीदा सोच और उनकी संवेदनशीलता का मुग्धकारी अन्दाज़ मिलता है। मोहसिन आफ़ताब की शायरी एक औद्योगिक नगर की शहरी सभ्यता में जीनेवाले एक शायर की शायरी है। बेबसी और बेचारगी भूख और बेघरी भीड़ और तन्हाई वंदगी और जुर्म नाम और गुमनामी पत्थर से फुटपाथों और शीशे की ऊँची इमारतों से लिपटी तहजीब न सिर्फ़ शायर की सोच बल्कि उसकी ज़बान और लहज़े पर भी प्रभावी होती है। मोहसिन आफ़ताब की शायरी एक ऐसे इनसान की भावनाओं की शायरी है जिसने वक़्त के अनगिनत रूप अपने भरपूर रंग में देखे हैं जिसने ज़िन्दगी के सर्द-गर्म मौसमों को पूरी तरह महसूस किया है जो नंगे पैर अंगारों पर चला है जिसने ओस में भींगे फूलों को चूमा और हर कड़वे-मीठे जज़्बे को चखा है जिसने नुकीले से नुकीले अहसास को छूकर देखा है और जो अपनी हर भावना और अनुभव को बयान किया है।
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