कम्बख्त यादें यह यादें मेरी और आपकी जिंदगी का वो हिस्सा है। जो मुझे अक्सर घर में पड़े चूल्हे के कोयले की तरह लगती है। जो सबकी जिंदगियों में सिर्फ एक बार ही जलता है। (जिया जाता) और यादों की हवा चलने पर हमारे अंदर ही धीरे - धीरे सुलगता है। सुलगते सुलगते जब कोयला रुपी यादें थक जाती हैं तो राख बन जाती है। और हमारे दिल के किसी हिस्से में दफन हो जाती है। इसी राख से जन्म लेती हैं यह कम्बख्त यादें। मेरे बारे में पंजाब के छोटे से शहर बटाला का रहने वाला हूँ। वहीं के सरकारी स्कूल में प्राथमिक शिक्षा पूरी की। स्वामी स्वतंत्रता आनंद मेमोरियल कॉलेज गुरदासपुर से फैशन डिजाइनिंग की उपाधि प्राप्त की।.
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