<p>डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त </p><p>जीवन को समझना हर किसी के बस की बात नहीं जीवन शुरू होता है भूख से और भूख के साथ ही समाप्त देखना ये है कौन कौन इस बीच भूख जैसी महामाया के पंजों से मुक्त हो जीवन को समझने में कामयाब हो पाता है <br />डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त मेरी ये पुस्तक ऐसे ही छिटपुट सावन की फुहारों से भरी हुई है। <br /> </p><p>शब्दों की कमी किसी के पास नहीं लेकिन शब्दों को सुगन्धित सुरभित वेणी में गूंथना जो देखने छूने व्यवहार में आपसी लोकाचार में आदान प्रदान में व् धनात्मक वैचारिक प्रकल्प अनुदान में सकारात्मक ऊर्जा प्रेषित करे तो साहित्यिक सेवा का समन्वय अंकित करती है। कविता मन* की ऊर्जा है इसके भाव आत्मा के स्वरूप हैं ये प्रेम है आनन्द है मौसिक़ी है जो सतत [ अखंडित ] प्रवाहित होती ही रहती है। कभी मुझसे तुम तक कभी तुम से मुझ तक</p><p><br />सामाजिक नाम - डॉ अरुण कुमार शास्त्री <br />साहित्यिक नाम- एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त <br />स्थाई निवास - दिल्ली एन सी आर<br />नागरिक हक़ीक़ी - भारत<br />नागरिक - लिटरेरी - समस्त विश्व</p><p>लेखन के कीटाणु पैदाइशी ही हैं बचपन की १४ छोटी छोटी डायरी भूख की भेंट चढ़ गई बहुत रोता हूँ उन्हें याद करके तब से जब से होश संभाला है एक एक शब्द संभाला है - पढोगे तो जानोगे इस - औघड़ - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त को</p><p>डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त</p><p></p>
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