अधराजण (Adharajan)

About The Book

अधराजण आनन्द कुमार आशोधिया की एक सांस्कृतिक साहित्यिक और शोधपरक कृति है जो हरियाणवी लोककाव्य की रागनी परंपरा को आधुनिक साहित्यिक विमर्श से जोड़ती है। यह महाकाव्य केवल एक प्रेमकथा नहीं है बल्कि सत्ता आत्मबलिदान और सांस्कृतिक पुनर्पाठ का गहन विश्लेषण भी प्रस्तुत करता है। लेखक ने लोकगीतों की आत्मा को पिंगल शास्त्र ऐतिहासिक अभिलेखों और आलोचनात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से पुनः परिभाषित किया है।कथानक महाराजा जगत सिंह रसकपूर अधराजण और फतेहकँवर के त्रिकोणीय संबंधों पर आधारित है। इसमें प्रेम केवल व्यक्तिगत भावनाओं तक सीमित नहीं रहता बल्कि सत्ता और संस्कृति के बीच के द्वंद्व को भी उजागर करता है। अधराजण का चरित्र एक ऐसी स्त्री का प्रतीक है जो प्रेम में अमरता खोजती है और षड्यंत्रों के बीच अपनी आत्मा को बचाए रखती है।पुस्तक में 30 मूल रागनियाँ दी गई हैं जिनके साथ वृत्तांत और विश्लेषण भी सम्मिलित है। छंद संरचना पिंगल शास्त्र पर आधारित है और दरबारी अभिलेखों के ऐतिहासिक संदर्भों को समाहित करती है। अन्य लोक-संस्करणों की तुलनात्मक समीक्षा गुरु-शिष्य परंपरा का उल्लेख साहित्यिक समीक्षा प्रस्तावना और भूमिका इसे शोधपरक दृष्टि से समृद्ध बनाते हैयह ग्रंथ शोधार्थियों कवियों और लोक-संस्कृति प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसमें प्रयुक्त रचना ढाँचा छंद विश्लेषण और गेयता सूची नवलेखन के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकती है। पुस्तक का कवर एक पारंपरिक भारतीय स्त्री की चित्रण के माध्यम से अधराजण की आत्मा को दर्शाता है जो गीतों में अमरता खोजती है और इसे सांस्कृतिक धरोहर का रूप देती है।लेखक आनन्द कुमार आशोधिया हिंदी और हरियाणवी साहित्य के समर्पित कवि और शोधकर्ता हैं। उन्होंने तकनीकी परिशुद्धता और भावनात्मक गहराई के साथ इस महाकाव्य को प्रस्तुत किया है। अधराजण उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है जो लोक और शास्त्र के बीच सेतु का कार्य करती है।यह द्वितीय संस्करण (2025) पूर्व संस्करण की तुलना में अधिक परिष्कृत है जिसमें नई रागनियाँ समालोचनात्मक टिप्पणियाँ और छंद संरचना का विस्तार शामिल है। यह पुस्तक साहित्य प्रेमियों विश्वविद्यालय स्तर के विद्यार्थियों लोककला और रागनी गायन में रुचि रखने वालों तथा हिंदी-हरियाणवी कविता के पारखियों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है।“जो मिट्टी में गीत बोता है वो पीढ़ियों तक संस्कृति का चांद उगाता है।” अधराजण उसी चांदनी की झलक है जो लोकगीतों की आत्मा को साहित्यिक अमरता प्रदान करती है।
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