<p>इस पुस्तक में सुश्री रंजना वर्मा जी ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से जीवन की सच्ची अनुभूतियों और वास्तविक तथ्यों को व्यक्त करने का प्रयास किया है। वास्तव में आज मनुष्य का खोता हुआ अस्तित्व भूख बेरोज़गारी हिंसा और इन सब के फलस्वरूप उपजने वाले दर्द और पीड़ा के साथ सभी परिस्थितियों में धैर्य साहस और सहनशीलता आदि से सामंजस्य स्थापित करने का जो प्रयास किया जाना चाहिये उस की अभिव्यक्ति रंजना जी की ग़ज़लों में है। कहते हैं कि उम्र के साथ ही अनुभव भी बढ़ता जाता है और रचनाओं में ऐसी परिपक्वता होती है कि जिस से आने वाली पीढ़ियों को भी सीखने का सबक मिलता है । और तब रंजना जी की क़लम उठती है और ये सीख देती है ।</p>
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