कभी कभी पश्चिम के लोग रमण महर्षि से भी कुछ ऐसे ही सवाल पूछ लिया करते थे। सवाल पूछने और शंका निरसन करने के क्रम में भी पता चल ही जाता होगा कि अपने ह्रदय और दिमाग पर दृश्य जगत का कितना प्रभाव रहता होगा। क्या गुरु के बिना साधक का जीवन अधूरा ही माना जाएगा? क्या दिव्य जीवन और देवत्व के अधिष्ठान की अनुभूति कुछ गिने चुने साधकों तक ही सीमित रहनेवाली? यह एक ऐसा विषय है जिसे व्यक्ति विशेष की समझदारी के क्षेत्र के अनुसार कही जा सकेगी: व्याख्यान के कई आयाम भी हो सकेंगे।
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