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About The Book
Description
Author
ये कवितायें ऐसे समय में लिखी गयी है जब लगता है कि का सोच-विचार की क्षमता क्षीण सी गयी है।विज्ञानपन को सूचना समझा जा रहा हैसूचना को ज्ञान । सवालों से बच कर लोग भागे जा रहे है।बिना सोचे ही कुछ भी को फालो कर रहे है। यदि सवाल हुआ भी तो पूर्व निश्चित जबाब है। इसलिए जरा सोच कर बताना ? कहने की जरूरत महसूस हो रही है। इसके पूर्व मेरा काव्यसंग्रह “लोकतंत्र और नदी “लोकतंत्र और रेलगाड़ी 2018 मे प्रकाशित हो चुके हैंइसी क्रम में तीसरा काव्यसंग्रह “जरा सोच के बताना” प्रस्तुत है।जिसमें देश दुनियाँसमाज की विद्रूपताओं के प्रति सवाल हैजिन्हे भारतीय संस्कृति रचे-बसे प्रतीको के माध्यम से उठाया गया है।संभव है किसी को ये कंकड़ जैसे लगे क्योंकि कंकड़ उतनी हो चोट करते हैजिससे तंद्रा टूट सके। मेरी कोशिश समाज व्यक्ति की तंद्रा तोड़ने की ही है ।