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About The Book
Description
Author
ये बात हुस्न दीदार ए दिलबर की है
एक हुस्न के किस्से को तीन हिस्सों में समेंट कर लिखने की हैं
बात अगर उस हुस्न की करें तो शब्दों की झाड़ियों में भी
उस कीमती से तिलिस्मी दीदार का ज़िक्र कुछ मुश्किल सा लगता हैं
वो मेरे एहसास के पन्नों में जड़े हुए नगीने सा लगता है
सुबह की खिलती धुप सा लगता है शाम के घर लौटते पंछी का घर पहुँचने की कुछ जल्दी जैसे लागता है
उसके हुस्न पर कहे बिना अब दिन कुछ अधुरा सा लगता है
उसके एहतिराम ए पेशकश मैं अब मैं क्या कहूं खुदा खुद उसे इतना ख़ास बना रखा है|