जय प्रकाश मिश्रा कलमधारी की यह पुस्तक सनातन धर्म की गहन खोज है जो एक साधारण प्रश्न से शुरू होकर जीवनदर्शन तक ले जाती है। क्या हिंदू होना केवल रीति-रिवाज है या वैज्ञानिक जीवनशैली? लेखक इतिहास वर्णाश्रम औपनिवेशिक प्रभाव और आधुनिक चुनौतियों को सरल कहानियों से जोड़ते हैं। अहिंसा सत्य क्षमा जैसे सिद्धांतों से लेकर मूर्तिपूजा यज्ञ और योग के वैज्ञानिक आधार तक- हर परंपरा को तार्किक विश्लेषण से समझाते हैं। मनुस्मृति के दस लक्षण पुरुषार्थ चतुष्टय और सर्वधर्म समभाव के माध्यम से यह स्पष्ट करते हैं कि सनातन केवल आस्था नहीं बल्कि संतुलित जीवन का मार्ग है। ब्रिटिश विभाजन नीति से जातिवाद की विकृति युवाओं की दुविधा से लेकर भविष्य के 50 वर्षों का दृष्टिकोण - सब कुछ प्रेरक उदाहरणों से रोशन। ''वसुधैव कुटुम्बकम्'' की भावना से एकता का संदेश देती यह पुस्तक पाठकों को जड़ों से जोड़ती है। आधुनिक युग में प्रासंगिक यह हर हिंदू के लिए आत्मचिंतन का आईना है।
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