''मरन यातना'' गोरखपुर से बेंगलुरु आकर बसे ग्रेगरी पिंटो की आत्मकथा है एक ऐसी जीवन गाथा जो बचपन के संघर्षों से लेकर वर्तमान की चुनौतियों तक फैली है। यह कहानी एक साधारण परिवार के बच्चे की है जिसने घरेलू कलह के बीच अपना बचपन खोया नौवीं कक्षा में गलत फैसले के कारण जेल की सलाखों के पीछे पांच साल बिताए और फिर समाज में अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद की। यह किताब केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं बल्कि उन सभी रिश्तों की दास्तान है जिन्होंने उसकी जिंदगी को आकार दिया - मेघना का अधूरा प्रेम रोज़ से विवाह और पितृत्व की जिम्मेदारी भाई सुनील की रहस्यमय मृत्यु का अनसुलझा सच और न्याय की अनवरत खोज । कच्ची बेबाक और बिना किसी लाग-लपेट के लिखी गई यह आत्मकथा पाठकों को जीवन के उन अंधेरे गलियारों में ले जाती है जहां सच और न्याय की परिभाषाएं धुंधली हो जाती हैं पर उम्मीद की किरण कभी बुझती नहीं।
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