मुहब्बत ! लफ्ज़ ने धीरे से उसके लबों को छुआ।तो ये मुहब्बत ''अफ़ीफा अशरफ अली'' के दिल कि भी ज़ीनत बन गई।तुम खास हो ''शाह'' या मेरी मुहब्बत ने तुम्हें खास बना दिया।समझ नहीं पाती। अपनी सरसारी पर खुद ही हँस देती वह।ऐसी हँसी जो आँखों में नमी ले आती।गर जान जाते ''वो'' कि उनके लिए किसी कि चाहतों में ऐसी दीवानगी है तो क्या अफ़ीफा अशरफ अली कि शख्सियत ऐसी थी कि ठुकरा दी जाती? अंजाम-ए-इश्क़ दास्तान मुहब्बत की।ऐसी जो कहीं देखी ना सुनी।अफ़ीफा अशरफ अली का इश्क़इश्क़-ए-मिज़ाजी तो ना थाअलबत्ता इश्क़-ए-हक़ीक़ी था।जो नूर को नूर में मिला गया।आख़री सफ़र तक रवाना होने तक उसके इश्क़ ने उसे सरापा मोतबर कर दिया।
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