श्री प्रेमकिशोर पटाखा के सम्पादन में श्री देवेन्द्र कुमार ने जब मेरे गीतों की चयनिका ‘सदाबहार गीतकार बालस्वरूप राही’छापी तो एक विचार मेरे मन में आया कि सदैव कवियों की रचनाएं ही आन-बान-शान के साथ क्यों छापी जाती हैं? कवयित्रियों के योगदान को क्यों उपेक्षित किया जाता है? मुझे प्रसन्नता है कि अपने मन में उठा यह प्रश्न जब मैंने देवेन्द्र जी को बताया तो उन्होंने सोत्साह उत्तर दिया - आप श्रृखंला तैयार करा दीजिए मैं सहर्ष छापूंगा। इस प्रकार ‘समकालीन कवयित्रियां’ का सपना साकार हो रहा है। लोकप्रिय गीतकार श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने इसके सम्पादन का दायित्व स्वीकार किया। किसी भी कवि अथवा कवयित्राी के बारे में सर्वसम्मति बनना बड़ा कठिन है। कोई उसका घोर प्रशंसक होता है कोई घोर आलोचक। किन्तु पुष्पा राही इसका अपवाद हैं। उनका आलोचक ढूंढ़े से भी नहीं मिलेगा। प्रशंसक सभी एकमत हैं कि पुष्पा राही की कविताएं सबसे अलग हैं और किसी भी भाषा का कोई भी कवि वैसी कविताएं नहीं लिखता। उनकी कविताओं में निजत्व की विशेषता तो है ही कवित्व की गहराई भी है। उनकी कविता उनसे और उनके आस-पास के जीवन से गहनता के साथ जुड़ी हुई हैं। वे साधरण होते हुए भी असाधरण कविताएं हैं क्योंकि उनमें अभिव्यक्ति की कलात्मकता एवं अनुभूति की सहजता अद्भुत रूप में मौजूद है। हिंन्दी के छोटे बड़े अनेकानेक कवियों ने घोषित किया है कि उनके जैसा कोई नहीं।
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