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डॉ. मिद्हत-उल-अख़्तर ग़ज़ल और शख़्सियत के कुछ पहलू डॉ. मिद्हत उल अख़्तर का शुमार उर्दू के समकालीन जदीद ग़ज़लगो शायरों की पहली पंक्ति के विख्यात शायरों और रचनाकारों में होता है। सरल शब्दों में बड़ी बात कहना और बड़ी बात के लिए आसान लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करना डॉ. मिद्हत-उल-अख़्तर की विशेषता है। (आगे हम डॉ. मिद्हत लिखेंगे।) समाज में व्याप्त कुरीतियों पर व्यंग्य करना तथा अपने अंदर की तल्ख़ियों को इस तरह व्यक्त करना कि वह सब की समस्या समझी जाए। जदीद ग़ज़ल के इस नुमाइंदा शायर को उसके एहसास की तपिश जब उद्वेलित करती है तो अपने-पराए का लिहाज़ किए बिना सब कुछ कह जाता है। डॉ. मिद्हत ने अपनी इन ग़ज़लों में पूर्वी-हिंदी की बोलियों के अल्फ़ा ज़ जो उर्दू और हिंदी का मुश्तरक (साझा) सरमाया हैं का तख़लीक़ी इस्तेमाल किया है। यह अल्फ़ा ज़ आप के अशआर में इस तरह शामिल हुए हैं कि अजनबी नहीं लगते। छुवन (छुअन) बहरूपिया (बहुरुपिया) छलावा दल पिछलपाई अनछुआ निराश आदि (अंबर बहरायची). डॉ. मिद्हत की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि उन्होंने मुहब्बत को सकारात्मक व सृजनात्मक मूल्यों की तरह क़ुब ूल किया है। वह मुहब्बत को आत्मिक शांति का स्रोत ख़याल करते हैं। और इसे ही मानवता की कामयाबी का राज़ समझते हैं। इंसान के अंदर कुछ और बाहर कुछ का दिखावा करने वाले को दोमँुहा और मुनाफ़िक़ समझत े ह ैं तथा उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं।
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