'पिछले बरस का गुलमोहर'कवयित्री सोनरूपा विशाल के गीतों का संग्रह है!इस संग्रह में 65 गीत एवं 36 मुक्तक हैं!सोनरूपा विशाल के इन गीतों में प्रेम गीत बहुसंख्यक हैं!इनमें कुछ गीत सामाजिक सन्दर्भों के भी हैं ! इस संग्रह के गीत विविध प्रकार के हैं!सोनरूपा कहती हैं कि जब प्रेम जिया तो उसकी अभिव्यक्ति गीतों में उतर आई जब विसंगतियों ने झिंझोड़ा तो उनकी सुनी!जब नैतिक ज़िम्मेदारियाँ निभाने की ज़रूरत महसूस हुई तो कुछ ज़िम्मेदार गीत क़लम से निसृत हुए!यानि अनुभूतियों ने ज़हन को नम बनाये रखा ! आज की विसंगति यही है कि हम जो जीना चाह रहे हैं वो जी नहीं पा रहे हैं इसीलिए हम लिखने वालों के पास शब्द ही एक ऐसा सहारा हैं जिनमें हम वो जी पाएं जो जी नहीं पा रहे! अधिकतर गीतों में मैंने प्रेम के कलश की स्थापना कर उसे पूजा है!क्यों कि न केवल मेरे लिए वरन पूरी क़ायनात के लिए प्रेम का सर्वोपरि होना बहुत ज़रूरी है! आज के सन्दर्भ में देखें तो जिसकी सबसे ज़्यादा उपेक्षा हुई है वो है प्रेम! यही सोच कर कई गीत दुनिया को सुंदर बनाने की कामनाएं जीते जीते लिख गए! कितनी ही बार ख़ुद को पगली भी कहा और ख़ुद से ये भी कहा कि सोनरूपा ऐसी दुनिया कल्पनाओं में बसाई जाती हैं निकलो बाहर सत्य का सामना करो ! युगीन धड़कनों का स्पंदन सुनो! शायद ऐसे ही क्षणों में वे गीत लिखे जिसमें तल्खियाँ आ गईंआक्रोश आ गया व्यवस्था के प्रतिअमानवीयता के प्रति! कभी देश प्रेम मन के भीतर हिलोरें लेता तो मैं उसकी महिमा गाती!स्त्री हूँ तो जानती हूँ कि कब कब हमें हौसलों की अदृश्य तलवार म्यान से निकालनी है तो स्त्री के हक़ में कुछ शब्द चित्र रच गए !
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.