अनजाने में बहुत कुछ दे गयेजिसका संज्ञान आज अचानक अपनी पेन्टिंग को देखते हुए हुआ।आज जब लोग तारीफ करते हैं तो उस तारीफ के असली हकदार बाबूजी ही हैं। मैं और मेरी बहिन नम्रता चित्र बनाते और रंगों को भरते ।पर उनकी पारखी नज़र ने परखाऔर एक अच्छे चित्रकार की तलाश करने में लग गये।पचमढी सन् 1978 में ट्रान्सफर होकर अमृतसर से आयेऔर इत्तिफाक से बी एड कोलिज में राय अंकल से मुलाकात हुई। जहाँ पता चला कि उनकी 86वर्षीय माताजी ना केवल कलाकार हैं अपितु सिखाती भी हैं।.
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