पलाश के फूल
Hindi

About The Book

मेरी काव्य यात्रा ई. 1970 से शुरू हुई थी मन्थर गति से अनवरत चल रही है। जिन्दगी की उलझनों में जीवन इस तरह उलझता रहा है कि मैं चाहकर भी वर्षों तक अपना कवितासंग्रह प्रकाशित करवा नहीं सकी। जिन्हें मैं अपना शुभचिंतक समझती थी उन्होंने मुझे हमेशा यही सलाह दी कि कविता लिखना छोड़ दो लेकिन कोई भी नहीं समझ पाया कि लिखना मेरे जीवन का अनिवार्य हिस्सा है शब्द मेरी ताकत है। मेरी प्रथम पुत्री कुसुम मन्दबुद्धि व अपाहिज थी अतः मेरा अधिकांश समय उसकी परवरिश में बीत जाता था पर हर पल मेरी सांसों के साथ-साथ एक स्वप्न पलता रहा कि मुझे कुछ लिखना है आज मैं अपना दूसरा काव्यसंग्रह प्रकाशित होते देख अपार हर्ष का अनुभव कर रही हूँ। मैं महादेवी वर्मा और अज्ञेयजी की कविताओं से बहुत प्रभावित हूँ मैं उनका अंश मात्र भी नहीं हूँ पर वे हमेशा मेरे प्रेरक रहें हैं।
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