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About The Book
Description
Author
जी हाँ मुझे भी कुछ कहना है। कुछ नहीं बहुत कुछ। इतना कि वाणी अवरूद्ध हुई जा रही है लेखनी थम सी रही है। यादों की घटाएँ बरसना चाहती हैं। मेरा जन्म ‘आरा’ में हुआ। 16 फ़रवरी सोमवार का दिन था सरस्वती पूजा के दूसरे दिन। बी.ए. तक की पढ़ाई ‘लंगट सिंह कॉलेज मुज़फ़्फ़रपुर’ में हुई। एम. ए. ‘भागलपुर विश्वविद्यालय’ से किया। मुझे एम. ए. में स्वर्ण पदक मिला। छात्र जीवन में मुझे राष्ट्रीय छात्रवृत्ति से नवाज़ा गया। पीएच.डी. ‘डॉ. रामजी सिंह’ के निदेशन में किया। पटना विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के व्याख्याता के रूप में नियुक्ति हुई। बचपन से मुझे कल्पना के पंखों पर उड़ने की आदत है। उड़ते-उड़ते क्षितिज के उस पार चली जाती और कुछ न कुछ लिख जाती। कई कविताएँ लिखीं और फिर कविताओं की बाढ़-सी आ गयी। लोग माँगकर प्रकाशित करने लगे। कॉलेज और घर की ज़िम्मेदारियों में मैं लिख नहीं पाती थी। मैं सुधा सिन्हा बचपन जवानी और बुढ़ापे को दरकिनार करके लिखने लगी। मैं मैं हूँ मुझे उम्र से क्या लेना-देना। लिखने की कोई उम्र नहीं होती। मैंने बचपन को पार किया जवानी को पार किया और बुढ़ापे की दहलीज़ में आ गयी। कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती। मैं पड़ावों को पार कर चलती जा रही हूँ इक अनन्त की ओर भावनाओं के समुद्र में गोते लगाते हुए बहती जा रही हूँ इक अपरिचित सन्नाटे की ओर। मैं बचपन जवानी बुढ़ापे सभी से अलग हूँ। मेरा किसी से कोई रिश्ता नहीं किसी से कोई नाता नहीं। इस कोरोना काल ने तो बड़ा उपकार किया। कहीं आना-जाना नहीं किसी से मिलना-झुलना नहीं बस क़लम पकड़ना और लिखना यह तो मेरे लिये वरदान साबित हो गया।