दरीचे


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About The Book

दरीचे | Dareeche जिस तरह दरीचे के मानी हैं - झरोखे ठीक उसी प्रकार इस किताब की सभी नज़्में किसी न किसी झरोखे से झाँक रही हैं। कुछ झरोखे (दरीचे) चैन-ओ-सुकून की ओर खुलते हैं तो कुछ टीस की जानिब। कुछ नज़्में रूह को झकझोर देती है तो कुछ मन को तृप्त कर देती हैं। मज़े की बात ये है कि पूरी किताब में दरीचे नाम से कोई भी नज़्म मौजूद नहीं है बल्कि ज़िन्दगी के अलग-अलग एहसासों के झरोखे हैं जिनसे नज़्में अपने मिज़ाज के अनुसार झाँक रहीं हैं। कुछ नज़्में माँ के साथ होने जैसा सम्पूर्ण अहसास देती हैं तो कुछ दुनियादारी के मामूलीपन की कोफ़्त टटोलती हैं। कुछ नज़्में धुन की अंगुली पकड़ गुनगुनाती मालूम होती हैं वहीं कुछ नज़्में बीज के रूप में और नई नज़्मों को पैदा करती हैं। हर कविता के साथ उसका अंग्रेज़ी तर्जुमा (अनुवाद) भी शामिल है जो ‘दरीचे की आवाज़ को ज़बानी सरहद के पार ले जाने की कोशिश है। Prashant Bebaar is a hindustani poet who has been writing for more than one and half decade and has composed nearly thousand poems dozens of soulful lyrics and an active contributor in literary magazines of India. Bebaar is a performer who always impacts the heart of the audience with a message in his performance. He has been awarded with various awards & recognition. प्रशान्त बेबार बेबार शब्द का अर्थ है जिसे शब्दों में बयाँ न किया जा सके मगर अपने इन्हीं शब्दों के ज़रिये बेबार कई गहरे अर्थ गढ़ने वाली नज़्मों एवं कहानियों की रचनाएँ कर चुके हैं । बेबार पिछले डेढ़ दशक से निरंतर नज़्मों और अफ़सानों के ज़रिए सामाजिक-मानवीय जटिलताओं के एहसास कहते सुनते रहे हैं। नज़्म ग़ज़ल और कहानी लेखन के साथ-साथ बेबार ने लगभग दर्ज़न भर गीतों की भी रचना की है।
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