शंखमुखी शिखरों पर


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About The Book

‘शंखमुखी शिखरों पर’ से मैं उतर कर आया हूँ—हिन्दी के वैश्विक मैदानों में। मैंने हिन्दी को समुद्रों को पार करके कविता की और अभिव्यक्ति की आवाज बनते देखा है। आज की हिन्दी कविता के मुकाबले दुनिया की भाषाओं में जो श्रेष्ठ मन-मोहने वाली पंक्तियाँ आई हैं। उनमें हिन्दी कविता की पंक्ति अपना सूर्य-चाँद अलग से चमकाती दिखती है। तुलसीदास और जयशंकर प्रसाद की कविता पंक्तियों का जिस दिन दुनिया की भाषाओं में अनुवाद हो जाएगा हर कोई हिन्दी पर फिदा हो जाएगा। भाषाएँ सब लिपि पर आधारित है जब लिपियों की वैज्ञानिक श्रेष्ठता की प्रतियोगिता होगी तो हिन्दी लिखने-बोलने की सुगमता और उच्चारण को भी लिखने में शामिल करने की क्षमता के लिए हिन्दी को सब गले लगाने की कोशिश करेंगे।. ‘शंखमुखी शिखरों पर’ एक अहिन्दी भाषी क्षेत्रा से आने वाले पहाड़ी लड़के की तत्कालीन कविताएँ आपके समक्ष हैं। थोड़ा अपना बचपन और अपनी बोली की आहटों को तो पहचानिए। मैं कृतार्थ हो जाऊँगा। . लीलाधर जगूड़ी
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