कल्पना का कलरव

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: ''कल्पना का कलरव'' त्रिकोणीय तुकांत कविता 18 अध्याय का कलात्मक रस थाल कवि की कलम से.............. कवि हृदय भावुक और संवेदनशील होता है। उसमें कल्पना की तरंगे उठती रहती हैं जिसे कवि शब्दों में पिरो कर कविता की हरमाला की रचना करता है। इन संवेदनाओं और कल्पनाओं मुक्त मन से अभिव्यक्त करने का मौका मिलना चाहिए जिसमें किसी भी प्रकार का बंधन न हो। इसलिए आधुनिक युग में अनेक नईं-नईं प्रयोगवादी कविताओं का आविर्भाव हुआ हैं जिसमें आदरणीय श्री सुरेश पाल वर्मा ''जसाला'' जी द्वारा प्रेषित पिरामिड काव्य विधा से मैं विशेष प्रभावित हुआ हूँँ। कवि को सात पंक्तियों की कविता में शब्दों के माध्यम से एक कल्पना चित्र उपस्थित करने का श्रेष्ठ अवसर पिरामिड शैली में प्राप्त होता है। इसी विधा से प्रभावित होकर मैंने स्वतंत्र रूप से सात पंक्तियों की कविता को अठारह पंक्तियों का एक बड़ा स्वरूप और आकार प्रदान किया है जिससे पूरा शब्द भाव और व्यक्ति चित्र उपस्थित किया जा सके। यह कविता के क्षेत्र में पिरामिड आकार का एक नया अविष्कार है। जिस प्रकार ''श्रीमद् भगवद्गीता'' के अठारह अध्याय में संपूर्ण जीवन दर्शन और जीवन जीने की आदर्श शैली को प्रस्तुत किया गया है उसी प्रकार ''रंग पर्व प्रकृति और प्रतिभा'' काव्य-संग्रह में अठारह पंक्तियों में संपूर्ण भाव और शब्द चित्र को उपस्थित करने का प्रयत्न किया है। प्रथम पंक्ति में एक अक्षर और प्रत्येक पंक्ति में क्रमशः एक-एक अक्षर को बढ़ा कर अठारह पंक्तियों की त्रिकोणीय आकार की कविता में तुक मिलाकर एक नया प्रयोग किया है। प्रस्तुत काव्य-संग्रह में अल आस आप अन अक आर और आरी आदि तुकांत का प्रयोग किया गया है। मेरे ख्याल से शायद राष्ट्रीय स्तर पर अठारह पंक्तियों की त्रिकोणीय कविता का यह पहला
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