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About The Book
Description
Author
इंद्रधनुष के सात रंग हैं चटक लाल है नीलकंठ है; चलना जो ये शुरू किया अब मीलों बिछ गए जैसे पंथ हैं। अम्बर में रेखा सूरज की अब ना तो उड़ पाये कब ही; पंखों ने विस्तार बढ़ाया उड़ने का आकार बनाया; जो आरंभ हुई है चढ़ान अब बस लेनी है ये उड़ान...! उड़ान विविधता से सम्पूर्ण कविता-संग्रह जो दिन-बदिन के आम अवलोकन तथा विचारों से आसमाँ को तक नाप लेने की ख्वाहिश रखता एवं कोशिश करता है। बीस काव्य रचनाएँ जो मन के समंदर में गहरी डुबकी लगाकर अंतर्मन की आवाज़ को सतह तक खींच कर लातीं और शब्दों के रूप में प्रेक्षक के समक्ष प्रस्तुत करती हैं। हृदय में भावों और सुझावों से उतपन्न ख़यालों के एक अनंत सागर में से एक मटका भर सोच का पानी आँखों को पखारने के लिए यहाँ कागज़ और कलम में बिखेरा है। मन सोच का पुलिंदा है.. यहाँ कुछ शब्द उसके चुनिंदा हैं...।