<p>विज्ञान से साहित्य की यात्रा है इसीलिये तथ्यपरक है इस संग्रह का शीर्षक आँखें क्यों नहीं सोतीं। आँखों पर कितना लिखा गया पर कम ही है। आँखें देखती हैं सोंचती हैं रोती हैं हंसती हैं मुस्कुराती हैं। कभी ग़म में डूबती तो कभी खुशी का इज़हार करती हैं। कमल किशोर राजपूत जी इन्ही आँखों के गहरे पानी पैठ के मोती निकालते हैं। उनके इस संग्रह का शीर्षक आँखें क्यों नहीं सोतीं। इसमें शब्द अर्थ वाक्य प्रयोग विधा चलन भाव के सागर में हिलोरें लेते हैं तो कहीं कमल जी रचनाओं के माध्यम से अपने सूफियाने अंदाज़ में हमे प्रभु चरणों में बिठा देते हैं। ये रूहानी ताकत इनकी जन्मभूमि देवास म.प्र. से विरासत में मिली है जिसमे समर्पण का भाव घोल कर विभिन्न रसों की चाशनी मिलाकर कमल जी ने रसास्वादन के लिये परोसी है|</p>
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