<p><strong><u>प्राक्कथन</u></strong></p><p><strong>अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता।</strong></p><p><strong>मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम्॥- वाल्मीकि रामायण (बालकाण्ड 5.6)</strong></p><p>अयोध्या भारतीय संस्कृति की वह पुण्यभूमि है जो सहस्राब्दियों से धर्म नीति आदर्श और मर्यादा की सजीव प्रतीक बनी हुई है। यह नगर केवल भगवान श्रीराम की जन्मभूमि नहीं बल्कि भारतीय सभ्यता की आत्मा का मूर्त स्वरूप है। इसकी मिट्टी में इतिहास की परतें भक्ति की सुगंध और स्थापत्य की गरिमा एक साथ विद्यमान हैं। यहाँ के मंदिर और उनकी स्थापत्य संरचनाएँ भारतीय धार्मिक जीवन की अनवरत धारा को अभिव्यक्त करती हैं।अयोध्या का उल्लेख वैदिक पुराणिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में समान आदर के साथ हुआ है। ऋग्वेद में इसे देवताओं की नगरी कहा गया जबकि वाल्मीकि रामायण में अयोध्या का वर्णन एक आदर्श राजधानी के रूप में किया गया है</p><p>अयोध्या का इतिहास केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह नगर सप्तपुरी - अर्थात सात मोक्षदायिनी नगरी (अयोध्या मथुरा हरिद्वार काशी कान्यकुब्ज उज्जैन और द्वारका) - में प्रथम स्थान पर है। इसका तात्पर्य यह है कि अयोध्या केवल भौतिक रूप से नहीं बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी मानव जीवन को मुक्ति की ओर प्रेरित करने वाली नगरी है।रामायण के अनुसार अयोध्या को देवताओं ने भी अपनी स्वर्गीय विभूति का स्थान माना। यही कारण है कि यहाँ के मंदिरों में केवल पूजा का भाव नहीं बल्कि जीवन दर्शन का गूढ़ संदेश भी निहित है।</p><p>अयोध्या के मंदिर भारत की स्थापत्य कला का जीवंत प्रमाण हैं। इन मंदिरों में नागर ड्रविड़ और वेसर - तीनों स्थापत्य शैलियों का प्रभाव देखा जा सकता है।मुख्य मंदिर जैसे -1. राम जन्मभूमि मंदिर 2. हनुमानगढ़ी 3. कनक भवन 4. नागेश्व
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