<p><br> </p><p><em>समर्पण - यह छोटा सा शब्द अपने आप में बहुत बड़ा अर्थ लिए हुए है। समर्पण से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। मीरा ने समर्पण करके भगवान श्री कृष्ण को पाया राधा के समर्पण ने श्याम को राधेश्याम बनाया और हनुमान जी ने अपने अटूट समर्पण से प्रभु श्री राम को पाया। जहाँ समर्पण है वहाँ प्रेम है सफलता है और सबकुछ संभव है। यदि हम अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित नहीं हैं तो उसे प्राप्त करना कठिन हो जाता है। जीवन के हर क्षेत्र में समर्पण आवश्यक है। जैसे एक बीज अपनी आत्मा को धरती माँ को समर्पित करता है अपना अस्तित्व खोकर नन्हें पौधे के रूप में पनपता है और अंततः विशाल वृक्ष बनता है वैसे ही समर्पण से ही जीवन में फल मिलता है।</em></p><p><em>आज जब मैंने इस पुस्तक के लिए तन मन और धन से पूर्ण रूप से समर्पित होकर इसे लिखा तभी यह काव्य पुस्तिका समर्पण आपके कर कमलों तक पहुँच पाई। यदि आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पा रहे हैं तो इसका अर्थ है कि अभी पूर्ण समर्पण नहीं हुआ है। एकलव्य का गुरू के प्रति अटूट समर्पण उसे विलक्षण धनुर्धारी बना गया और उसके समर्पण की शक्ति ने असंभव को संभव कर दिखाया। मैंने अपने विचारों और शब्दों को वीणापाणि माँ शारदे को समर्पित किया और इस काव्य पुस्तिका का आरंभ हुआ।</em></p><p><em>यह काव्य संग्रह मेरी माता जी को समर्पित है जिनके आशीर्वाद और प्रेरणा से आज मैं इस मुकाम पर हूँ। वे मेरी रचनाएँ सुनती और उत्साहित करती थीं; उनका आशीर्वाद आज भी मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित करता है। आप भी थोड़ा सा समय निकालकर इस काव्य पुस्तिका समर्पण को पढ़ें आनंद लें और यदि कुछ अच्छा लगे तो हौसला अफजाई करें; यदि कोई कमी लगे तो व्यक्तिगत रूप से अवगत कराएं ताकि आगामी पुस्तकों में उसे सुधारा जा सके। मुझे आशा है कि पिछली पुस्तकों की तरह मेरी यह काव्य
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