अवधी भाषा की कविता-यात्रा हजार वर्षों से कहीं अधिक लम्बी रही है जिसे अब तक गतिमान भाषा की महायात्रा के रूप में देखा जाना चाहिए। सभी आधुनिक आर्यभाषाओं की तरह अवधी की शुरुआत भी दसवीं शताब्दी से मानी जाती है। भाषा के लिखित रूप के साक्ष्य पर। लेकिन इस भाषा का उद्भव दसवीं सदी के कितने सैकड़े पहले हुआ ठीक-ठीक कह पाना कठिन है। अवधी में लोकसाहित्य कब से लिखा जा रहा है यह भी कोई नहीं बता सकता। परन्तु यह अनुमान हवाई नहीं है कि जो भाषा दसवीं-ग्यारहवीं सदी के आसपास अपने लिखित रूप में मौजूद दिखती है उसका मौखिक रूप भी कहीं और पहले से आकार लेता हुआ विस्तृत ऊर्जावान और आकर्षक रहा होगा। भाषा से 'बोली' के दर्जे में पहुँचा दिए जाने के बावजूद आधुनिक काल में अवधी रचनात्मकता रुकी नहीं। कवियों ने अपने घर गाँव और अवध की भाषा में लिखा और असरदार लिखा। कोई उन्हें देख रहा है कि नहीं रचना कहीं से छपेगी कि नहीं कोई कभी मूल्यांकन करेगा कि नहीं; इन सबसे बेखबर होकर अवधी साहित्यकारों ने सिर्फ लिखा। इसका सुपरिणाम यह हुआ कि अवधी के आधुनिक काम में रचनाकारों और रचनाओं की कमी नहीं है। पूरे अवध में और अवध से बाहर भी अवधी रचनाकारों ने विपुल साहित्य रचा। वह कितना मूल्यवान है यह अलग मसला है लेकिन नाना नकारात्मकताओं के मध्य अवधी रचनात्मक चेष्टा की सराहना की जानी चाहिए। यह किताब उसी दिशा में एक प्रयास है।.
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