Aadivasi Vimarsh Aur Samkalin Hindi Upnyas (आदिवासी विमर्श)


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About The Book

“सर्वोदयी और गाँधीवादी नेताओं तक सब धन्यवाद के पात्र हैं यहाँ तक कि बनवासी कल्याण आश्रम भी पर वह उस तरह से उन्हें लाभ नही दिला पा रहे हैं जो उन्हें दिलाना चाहिए। आदिवासियों के बीच से मुख्य धारा में आए राजनेता और नौकरशाह भी आदिवासियों की जगह अपना पेट भरने में लगे हैं वैदिक काल से आज तक यह आरण्यवासी किस तरत की अमानवीय जिन्दगी जी रहे हैं; वो किसाी भी समाज के लिए शर्म की बात है। दलितों और आदिवासियों में सत्ता की जुगाली कर गुनी लोग जो नव ब्राह्मण बन गए हैं उनका भी अपने समाज के विकास में कोई खास योगदान नही है यह भारतीय समाज में परम दुर्भाग्य की बात है कि शिबूशोरेन जैसे प्रचण्ड आदिवासी नेता भी सत्ता के चट्टे बट्टे होकर रह गए। जो आदिवासी नौकरशाह हुए वो अपने समाज से कटकर जीवन जीना पंसद करते हैं। ‘यदि भारत के सभी दलित मध्य वर्ग के सदस्य बन जाय और जातिवादी मानसिकता का बैरोमीटर वहीं ठहरा रहे तब भी वे एक अलग वर्ग बने रहेगें जैसे अमेरिका में सफल अश्वेत या युरोप में सम्पन्न एशियाई हैं। भारत के अधिकांश ब्राह्मणों में द्रोण से सुदामा तक इसकी अनेक प्रतीक कथाएं हैं फिर भी वह पूज्य था क्योंकि वह विप्र था। राजकिशोर जी का कहना है कि सामाजिक सम्मान और स्वीकृति के कई - कई स्रोत होते हैं; भारत में अभी भी जाति एक ऐसा ही स्रोत बनी हुई है उन्होने दुख प्रकट किया था कि दलित ब्राहम्ण या नव ब्राह्मण आदिवासी उसी समाज में रहने का प्रयास करता है जहाँ पर हर मोड़ पर ‘नो इन्ट्री’ की तख्ती लगी हुई है। पेड़ से टूटा हुआ पत्ता या तो आकाश में उड़ेगा या जमीन पर गिरेगा वह पेड़ की ओर नही जा सकता। : प्रो. दिनेश कुशवाह (प्रख्यात कवि आलोचक)
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