ऐसा बुंदेलखंड जिसकी विरासत स्वर्णिम अक्षरों में लिपिबद्ध है । किसी कवि ने बुंदेलखंड की प्राकृतिक छटा का बहुत सुंदर वर्णन किया है l “गिरि गहर नद निर्झर मय लता गुल्म तरूकुंज भूमि है तपोभूमि साहित्य कला युत वीर भूमि बुंदेल भूमि है” l आप सब ने किताबें तो पढ़ी ही होंगी और उनसे कुछ शिक्षा भी ली होगी l इस किताब को लिखने का उद्देश्य समाज के अंदर और हम सभी के अंदर वह छुपी हुई कमियों को उजागर करना है जिनमें सुधार और विकास की जरूरत है मैं अपने प्रदेश में रहने वाले उन प्रत्येक इंसान का आदर करती हूं जो मानवता को और इंसानियत को समझने वाले हैं और देश एवं प्रदेश में रहने वाले जरूरतमंदों की मदद करते हैं l इस पुस्तक की विशेषता किसी भी समाज की छुपी हुई कमियों को नई विचारधारा में तब्दील करने वाली है l कोई भी प्रांत हो या राज्य विशेष अपने आप को किसी दूसरे से पीछे नहीं रखना चाहता जिस प्रकार हम अपने पड़ोसियों को देखकर पीछे नहीं रह सकते या उसी प्रकार बुंदेलखंड भी विदर्भ से प्रतिस्पर्धा की होड़ में है l बुंदेलखंड के किसान विदर्भ आंध्र प्रदेश कर्नाटका और केरल के किसानो से होड़ में है l वर्षों से चली आ रही प्राचीन ‘रूढ़ियाँ’ एवं परम्पराएं जो विशेषकर महिलाओं के विकास में बाधक है उस पर मैं यह नहीं कहूंगी कि ये कानून से ही दूर होंगी बल्कि हम सबको ही समाज के अंदर परिवर्तन लाना होगा l हम सभी को एकजुट होकर रूढ़ीवादी परंपराओं जैसे दहेज़ रूपी दानव पर्दा प्रथा लड़का -लड़की में भेदभाव की परंपरा को बदलना होगा l बुंदेलखंड जो सामाजिक बुराइयों का शिकार हो गया है वहां सामाजिक परिवर्तन करना ही होगा । सभी वर्ग सम्प्रदाय के लोग संगठित होकर समाज को तो परिवर्तित कर ही सकते है बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान भी हल कर सकता है l मुझे पूर्ण विश्वाश हे कि इस पुस्तक को पढ़कर आप अपना एवं समाज का उत्तर्दायित्व पूर्ण करवाने में मदद करेंगे। ताकि हमारे बुंदेलखंड की खोई हुई चमक वापस आ सके ।
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