आग में फूल - कुछ ग़ज़लें गुज़र गया जो गुज़र के रह गया करता क्या मैं सिर्फ़ देखता रह गया जमाना हर रंग में सामने आया मेरे हालात पे अपने मुस्करा के रह गया न वफ़ा समझ में आई न जफ़ा हमने जानी हुआ इश्क़ तो बस होक रह गया इनायत ने उनकी मुझको ऐसा नवाज़ा वही फिर मेरे मुकद्दर होक रह गया. इस पुस्तक में रचनाकार ने ज़िन्दगी में जो पाया और देखा उसे सीधे-सादे शब्दों में कह दिया है. इस जहाँ में सब तरफ़ आग ही आग दिखाई देती है - जैसे नफ़रत की आग अहंकार की आग प्रेम की आग घृणा की आग अस्तित्व की आग धर्म की आग जाति की आग चिता की आग... इन सब के बीच में शायर ने मोहब्बत के फूल को खिलाए रखा है. यह संसार की आग में खिले हुए फूल का काव्य है जो प्रेम से इश्क़ से गुज़र कर परमात्मा तक पहुँचता है. इस पुस्तक में वो भावपूर्ण रचनाएँ हैं जिनमें प्रेम की कसक है विरह की टीस है प्रेयसी की सतत याद व एक सरल ह्रदय की चोट खाई तड़प है जिसे पढ़ कर ऐसा लगता है मानो यह पाठक के मन की ही बात हो. हिंदी भाषा को ऐसे ही सरल साहित्य की अपेक्षा है.
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