आईना मेरी पुस्तक का शीर्षक हैं और नाम से प्रकट होता है कि समाज को आईना दिखाना चाहता हूँ | मै अपनी रचनाओं के माध्यम से अब इसलिए कोशिश मे कितना सफल हो पता हूँ ये पढ़ने वाले दर्शकगण ही बता सकते है क्योंकि मैंने समाज के लोगों कि मानसिकता और समाज के परिवेश को पूरी तरह से आईना के माध्यम से दिखाने कि कोशिश की है अब सवाल ये उठता है कि पढ़ने वाला किस आयाम से किस आयाम तक देखता है और रचनाओं को पढ़ता है ये उसकी सोच पर निर्भर करता है |
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