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About The Book
Description
Author
क्या कहूं ये मेरे से संबंधित प्रताड़ित लेखनी भी इस आविधा प्रताड़ित से तंग बदलती मनोदशा को लिखने से कतरा रही हैं लेकिन इस जख्म से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता यही ठहरा। तो लिखित सारी काव्य रचनाएं कवयित्री को उन हाथों की तरह सहारा देती हुई नजर आयी है जैसे किसी युद्ध में संघर्षरत प्राणी हार से पहले हार मान के कई बार आत्महत्या करने का ख्याल मन में लाया हो। गुजरती हुई बचपन और दस्तक देती हुई जवानी ने शायद एक लड़की होने के कारण इतनी बेड़ियों से बांधने की कोशिश की हो रंग बिरंगी दुनियादारी भरी कौतूहल बदनामियों की उमड़ती हुई ताज और इसी बीच ज़िन्दगी को अपनी मंज़िल की तलाश। हा लेकिन कहा गया है अगर दिल के इरादे नेक हो तो जो चाहो मिल जाती है तो मुझे भी मिल गई थी वो एकाग्रतापूर्ण स्याही से गढ़ी गई लेखनी मेरे शब्दों से आपरूपी गढ़ती हुई अल्फ़ाज़ और यही पे पूरी होती दिख रही थी मेरी हर एक तलाश। बया करती गई खुद को इसके माध्यम से उस तन्हा रात में डर से से कापती हुई धड़कन के गूंज को समेटती गई खुद को खुद के लहजे के पन्नों पर और पहुंच चुकी थी उस सोचपुर्ण मका तक जहा मेरी सपने की वो डोर मेरे से कहती गई तुम चाहते थे ना हर एक दिन को ऐसे जीना जैसे की वो आखिरी हो। पहुंच चुकी दिल के उस दीवार तक जहां हवा दे रहीं थीं अपने ख्वाब अब मतलब नहीं रखता सगे- संबंधियों का भाव अब क्यूकी ढूंढ़ लिया था ये धड़कन लेखनी जैसा दिलदार अब।