आख़री रास्ता – यही प्रारंभ है… अर्थात “हर अंत एक नई शुरुआत है…”यह पुस्तक एक साधारण जीवन की असाधारण यात्रा का वर्णन है। दीपक जी जो कभी एक सफल नौकरीपेशा और विदेश अनुभव रखने वाले इंसान थे धीरे-धीरे जीवन के संघर्षों और परिस्थितियों के बीच टूटने लगे। समाज की राजनीति व्यक्तिगत चुनौतियाँ और कुछ गलत निर्णयों ने उन्हें ऊँचाइयों से गिराकर संघर्षों की गहराइयों तक पहुँचा दिया।हताशा और निराशा से भरे एक दिन जब वे संध्या समय मंदिर में बैठे थे तो उनके मुख से यही वाक्य निकला— जेहि विधि नाथ होई हित मोरा करहु सो बेगि दास मैं तोरा।यहीं से उनके जीवन में एक अद्भुत मोड़ आया। महाकाल की कृपा से उनका परिचय बच्चा महाकाल से हुआ। यहीमुलाकात उनके जीवन की दिशा बदलने वाली साबित हुई। इस मिलन के बाद दीपक जी की सोच परिवर्तित हुई। उनके भीतर सेवा श्रद्धा और आत्मिक शक्ति की एक नई धारा प्रवाहित हुई जिसने न केवल उनके जीवन को संवार दिया बल्कि उन्हें दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बना दिया।मंदिर सेवा से लेकर सामाजिक कार्य और धार्मिक आयोजनों तक दीपक की यह यात्रा बताती है कि सच्ची सफलता भीतरकी शांति और समाज के उत्थान में है।भोलेंनाथ की कृपा से ठाकुर जी की कृपा से ऐसा सहयोग बना कि दीपक का जीवन केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित नहीं रहा बल्कि जन-कल्याण का मार्ग बन गया। यही वह क्षण था जब उन्होंने अनुभव किया कि महादेव की शरण में जाकर हर असंभव सम्भव हो सकता है।यदि आप भी जीवन के किसी मोड़ पर ठहर गए हैं यदि आपको लगता है कि आपके चारों ओर के रास्ते बंद हो गए हैं—तो यह पुस्तक आपके लिए ही है। यह आपको याद दिलाएगी कि महादेव की कृपा से हर असंभव सम्भव हो सकता है।
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