‘दि अर्जेन्सी ऑव चेन्ज’ कृष्णमूर्ति की सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण पुस्तक है जैसा कि 1971 में लंदन से प्रकाशित इसके मूल अंग्रेज़ी संस्करण के मुखपृष्ठ पर इंगित किया गया था। जीवन से जुड़े विविध विषयों पर इस पुस्तक में बेबाकी के साथ प्रश्न-दर-प्रश्न पूछे गये हैं और कृष्णमूर्ति ने बड़ी बारीकी से उनकी पड़ताल की है। वे उत्तर देकर प्रश्न को निपटा नहीं देते बल्कि इस सहसंवाद में उन प्रश्नों के नये अनदेखे पहलुओं को उजागर करते चलते हैं और साथ ही पूछ भी लिया करते हैं कि साथ-साथ की जा रही इस परख के दौरान प्रश्नकर्ता के अंतर्जगत में घटित क्या हो रहा है। प्रश्नकर्ता: आप मुझसे पूछ रहे हैं कि हो क्या रहा है? मैं तो बस आपको समझने की कोशिश कर रहा हूँ। कृष्णमूर्ति: क्या आप मुझे समझने की कोशिश कर रहे हैं या कि जिस विषय में हम बात कर रहे हैं आप उसकी सच्चाई को देख रहे हैं जो मुझ पर निर्भर नहीं करती? यदि आप जिस विषय में हम बात कर रहे हैं उसकी सच्चाई को वस्तुतः देख रहे होते हैं तब आप स्वयं अपने गुरु होते हैं और स्वयं के ही आप शिष्य होते हैं जो कि अपने आप को समझना है। यह समझ किसी और से नहीं सीखी जा सकती।
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